एक विवाह ऐसा भी 1

जिस घर में शादी होती हैं उस घर में कितनी रेलचेल और कितनी धूम मची होती हैं ये तो आप सबको पता ही हैं। ये कहानी मेरे एक दोस्त की शादी की ही हैं, दोस्त का नाम हैं अमर। अमर के घर वालों ने उसकी शादी गाँव में करने का फैसला किया था। शादी छुट्टियों के दिनों में हो रही थी इसलिये सारे मित्रों और परिवारों का बडा जमावडा, दस पंद्रह दिन पहले ही शादी वाले घर रवाना हो रहा था।


बाकी लोग तो शादी के दो तीन दिन पहले आने वाले थे। हमारी बस में वें लोग थे, जो दस पंद्रह दिन की सैर पर निकले थे। जिस सिट पर बैठा था उस पर अमर की मामी जी आ बैठी। उनकी बेटी और पती एक साथ बैठे थे। अमर की मामी हम सब दोस्तों को
अच्छे से जानती थी। हमारे बीच काफी हसी मजाक भी चलता था।


रवी ! तू कब शादी कर रहा हैं .?. –
मामी ने मुझसे पुछा।
जिस दिन कोई अच्छी लडकी मिल
जायेगी कर लुंगा, मामी जी ! – मैंने
कहा।
मामी जी : कैसी लडकी चाहिये तुझे
.?. मैं ढुंढ लुंगी तेरे लिये।
मैं : जिसकी मम्मी आपकी तरह
खुबसुरत हो ऐसी लडकी…
शादी लडकी से करनी हैं या उसकी
मम्मी से .?. मामी जी ने चिढाते हुये
पुछा।
शादी तो लडकी से ही करुंगा पर सास
भी खुबसुरत हो तो क्या फर्क पडता
है .?.


मेरी बातों के पीछे का असली मकसद वो समझ गई थी। काश मैं ही तेरी खुबसुरत सास बन पाती पर क्या करे बच्ची अभी छोटी
है… हाय भरते उन्होंने कहा। आपसे रिश्ता जुडना तो मेरे लिये फन्टॅसी साबीत होता, काश के आप शादीशुदा ना होती। – मैंने भी उनकी तरह आह भरते हुये कहा। वो बात को समझ गालों में हसने लगी। हमारी बस अब हायवे पर आ चुकी थी। हम सब डिनर करके निकले थे इसलिये रात के मध्य में बस की लाईटस् बंद कर दी गई। लोग अंधेरे में भी एक दूसरे से बातें करते – करते सो गये। मैं और मामी जी अब भी जाग रहे थे।


मामी जी ने थंड से बचने के लिये एक कंबल ओढे रखा था जिसमें थंड के मारे मैं भी घुस बैठा था। मैंने चारों ओर नजरें घुमा कर खा
सब सो रहे थे। आप चाहे तो लेट जाये मैं थोडा आगे खिसक जाता हूँ – मैंने उनसे कहा। तुम्हारी गोदी में सोऊ क्या .?. – मामी जी कान में फुसफुसाई। यू आर वेलकम… – मैने भी फुसफुसाते कहा। मेरे हाँ करने पर उन्होंने अपना सर मेरी गोदी में रख दिया।
उनके साथ बातें करते हुये लंड पहले ही खडा हो गया था। उस पर उनके चेहरे के स्पर्श से वो फडफडाने लगा।


मामी जी ने बीना कुछ कहे लंड पर एक चपट जड दी। इस चपट से बीना बोले उन्होंने कह दिया था के संभालो इसे। मैंने उस चपट के बदले में उनकी चुचियाँ दबा दी। मेरे चुची दबाने से वो गुस्सा हुयी और जोर से लंड को मरोड डाला। हमारी शरारते धीरे – धीरे सेक्स का रुप ले रहीं थी। मैंने हौले हौले उनके निप्पल्स दबाने शुरु किये। वो भी पैंट के ऊपर से ही मेरे लंड को सहला रहीं थी।
कुछ देर बाद मैंने उनकी ब्लाऊज का बटन खोल कर उनकी चुचियों को आजाद कर दिया था।


काफी मस्त मुलायम चुचियाँ थी उनकी। एक – एक करके मैं उनकी दोनों चुचियाँ मसल रहा था। उन्होंने भी मेरा साथ देते हुये लंड पर कब्जा जमा लिया था। पैंट की झीप को खोल कर उन्होंने लंड को मुँह मे भर लिया था। अपनी जीभ और होंठों के कमाल से
वो लंड को मस्त कर रही थी।


अपनी साड़ी उन्होंने कमर तक ऊपर कर ली थी। एक हाथ से चुचियाँ मसलता हुआ दूसरे हाथ से उनकी चूत में ऊँगली कर
रहा था। हम इतने लोगों के सामने चुदाई तो नहीं कर सकते थे। इसिलिये बिना किसी के नजर में आये जो कर सकते थे कर रहे थे।
कुछ पल की कोशिश के बाद हम दोनों झड गये।


हमारी इस कोशिश में सुबह होने को आयी थी। अब तक कोई जागा नहीं था। हम दोनों सीधे होकर बैठ गये ता के लोगों को लगे के हम भी सिर्फ़ बैठे हैं उनकी तरह। बस सुबह सात बजे गाँव में पहुँच गई।

Aage Bhaag 2 mei padhe

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