अमर का गाँव का घर काफी बडा था।
काफी सारे कमरे थे उसमें।
पूरी बारात को अलग अलग रुकने की
व्यवस्था की गई थी। ऐसा लग रहा
था जैसे एक छोटा सा गाँव बस गया
हैं उसकी प्रॉपर्टी पर।
बाग – बगीचे, दुर तक फैले खेत, दो
चार कुअे, छोटी – मोठी नहरे।
जितनी बडी प्रॉपर्टी अमर की थी,
उतनी प्रॉपर्टी पूरे गाँव की मिलकर
भी नहीं थी।
गाँव के चारों दिशाओं के खेत उन्होंने
खरिद लिये थे।
दिन तो घर की साफ सफाई और
नहाने धोने में निकल गया। रात के
खाने के बाद हम सब बाराती खुले
आंगन में बैठ कर गपशप करने लगे।
बच्चे बुढे सब मिलकर अंताक्षरी गा
रहे थे।
माहोल को रंगीन करने का हर कोई
प्रयास कर रहा था।
कुछ शराबी लोग अलग थलग सबसे
दूर एक खेत में पार्टी कर रहे थे।
उनका खाना भी वही पर भेजा गया
था। अमर के मामाजी भी उस शराब
पार्टी में गये थे।
मामी जी अभी भी मेरे पास ही बैठी
थी। जब जब मौका मिलता वो मुझे
छूने का प्रयास कर लेती।
हमारा ये नाच गाना देर रात तक
चलता रहा। शराबी सब ढुत होके सो
गये थे।
सब लोग अपने अपने कमरे में सोने
चले गये।
हम सब दोस्त एक ही रुम में सोये थे।
उसी रुम में कुछ और भी जवान
रिश्तेदार सोये थे।
हम जहाँ जगा मिले वहा सो रहे थे।
कोई भी किसी के भी कंबल में घुसकर
थंड से बचने की कोशिश कर रहा था।
मैं भी एक बंदे के कंबल में घुस गया।
अंताक्षरी के वक्त ये बंदा दूसरे ग्रुप
में था। खुबसुरत गोरे रंग का निली
आखों वाला लडका था वो। उसे मैं
पहचानता नहीं था। अमर का कोई
नजदिकी रिश्तेदार ही था वो।
थोडी ही देर में मुझे नींद लग गयीं।
दूसरे दिन मुझे नजदिक के शहर में
बाजार जाना था, कुछ समान खरिदने।
मुझे जाता देख अमर की मामी भी
तैयार हो गई ये कह कर के उसे भी
कुछ खरिदना हैं।
हम निकल ही रहे थे खुशी के मारे के
तभी रात वाला लडका भागते हुये
आया और कहने लगा के उसे भी शहर
चलना है।
उसने हम दोनों की जोडी में आकर रंग
में भंग डाल दिया था।
मामी जी तो ऐसे गुस्से से देख रही थी
के उसे फाड कर खा ही जायेगी।
हम उसे ना भी नहीं बोल सकते थे। खा
म खा बात का बतंगड बन जाता।
मैंने मामी जी को चुप रहने का ईशारा
किया।
हम तीनों गाव की एक बस में बैठकर
शहर की तरफ चल दिये।
बस में वो पीछे वाली सिट पर बैठा था
और हम दोनों आगे वाली सीट पर।
ये कबाब में हड्डी ना आती तो हम
किसी होटल में चल कर कल का
अधुरा काम पुरा करते। – मामी जी
फुसफुसाई।
डोन्ट वरी इसको भी शामील कर लेंगे,
मैंने हसते हुये फुसफुसाया।
मेरी बात पर मामी जी ने चुटी काटी…
कही इसके साथ कुछ किया तो नहीं
.?.
अब करुंगा, हमारे बीच में आया हैं ना.
इसको बीच में लेंगे और हम दोनों भी
चोदेंगे… – मैंने झूठ कहा।
मेरी बात पर मामी जी खुलकर हस
पडी।
अगले कुछ मिनटों मे ही शहर आ गया
था। हम तीनों बजरों में घुमे खुब
शॉपिंग भी की।
चलो अब रिटर्न चलते हैं।, लडके ने
कहा।
तुम्हे जाना हैं तो जाओ हमे जरा
टॉयलेट जाना हैं। यहा पर शायद
होटल में ही फ्रेश होने को मिलेगा। –
मैंने कहा।
अच्छा ! मैं भी आता हूँ… थोडा फ्रेश
हो लुंगा फिर जाऊंगा… लडका बोला।
सच में इसकी गांड मार, ये बहुत बीच
में आ रहा हैं। – मामी जी छटपटा कर
बोली।
हम तीनों एक होटल में गये वहा एक
रुम बुक कर लिया।
लंच टाईम हो रहा था, लडके ने रुम का
पैसा भरा प्लस तीनों को लंच भी
मंगवाया।
मुझे मेडिकल में जाना हैं। मैं जाके आती
हूँ क्या तुम आओगे मेरे साथ .?. –
खाना खा लेने के बाद मामी ने पुछा।
क्या लाना हैं मैं ले के आता हूँ।, लडके
ने फिर कहा।
उनको दवाइयां लेनी थी, वो भुल गई
हैं। – मैंने कहा और मामी जी को आँख
मारी।
चलो हम दोनों जा के आते हैं, मामी जी
को थोडा आराम करने दो। –
मैंने लडके को कहा और उसे बाहर
लेकर गया।
रुम से बाहर, मैंने उसे नीचे खडे रहने
को कहा और मैं फिर रुम में जा घुसा।
उस बेवकुफ को कहा छोड आये .?. –
मेरे रुम में जाते ही मामी जी ने पुछा।
नीचे खडा किया हैं, उसको भी शामिल
करे क्या .?. – मैने हिचकिचाते हुये
पुछा।
ऐसे कैसे शामिल करे .?. वो क्या
समझेगा मुझे .?. – मामी जी बोली।
आप सोने का नाटक करना, अपनी
साडी थोडी ऊपर कर लेना कमर तक।
मैं डाईरेक्ट चाबी से दरवाजा खोल
दुंगा। आपको अधनंगी देख कर या तो
वो आपके साथ सेक्स करना चाहेगा
या मेरे साथ करना चाहेगा। – मैंने
कहा।
तुम्हारी वजह से उसको झेलना पड
रहा हैं। – मामी जी गुस्से से बोली।
हो सकता हैं मजा भी मिले। आप तैयार
हो ना .?. – मैंने फिर पुछा।
इतनी दूर तक आये हैं बिना कुछ किये
जाना भी मुर्खता होगी। – मामी जी
बोली।
तो ठीक हैं, तय हुआ आप सोने का
नाटक करेगी और हम आपको
अधनंगा देखकर चान्स मारने का
नाटक करेंगें। – कह कर मैं नीचे चला
गया।
मैं और लडका मार्केट में गये, वहाँ पर
हमने मेडिकल से कुछ दवायें खरिदी।
फिर थोडी देर घुमे फिरे और रुम पर
चले गये।
मैंने पहले डोअर नॉक किया फिर
चाबी से दरवाजा खोला। जैसा तय
हुआ था मामी जी कमर तक साडी
ऊपर करके सोने का नाटक कर रही
थी।
उनको देख कर लडके की आँखे फटी
की फटी रह गई।
मामी जी थी भी सुंदर, गदराये बदन
की गोरी मस्त औरत। उनको नार्मली
भी कोई देखे तो उनपे फिदा हो जाये।
यहाँ तो वो अधनंगी थी।
मैंने लडके को इशारे में पुछा ले ले
क्या .?.
उसने डर के मारे ना में गर्दन
हिलायी।
डर मत कुछ नहीं होगा, उठ जायेगी तो
बता देंगे साड़ी ठीक कर रहे थे। – मैंने
धाडस बंधाया।
लडका अभी भी डर रहा था। मैंने
अपना एक हाथ मामी जी की माँसल
जाँघों पर फेरना शुरु किया। मामी जी
चुपचाप पडी रही। मैंने उसे भी इशारे
से हाथ फेरने को कहा। वो डरते –
डरते हाथ फेरने लगा।
कुछ पल के बाद मामी जी नींद में आहे
भरने का नाटक करने लगी।
देखा .?. इनको भी मजा आ रहा हैं। –
मैंने माहोल बनाने के लिये लडके से
कहा।
लडका मस्त होकर हाथ फेरने लगा।
मैंने मामी जी की पैंटी में ऊँगली डाल
कर उनकी चूत पर ऊँगली फेरना शुरु
किया।
अरे, ऐसा मत करो, जाग जायेगी,
लडका घबरा कर मुझे मना करने लगा।
डर मत, मैं इन्हें अच्छी तरह से
जानता हूँ।
ये इतनी गहरी नींद में सोती हैं के हम
दोनों इन्हें नंगा कर के चोद भी ले तब
भी आँख नहीं खुलेगी। – मैंने कहा और
मामी जी की पैंटी धीरे धीरे करके
निकाल ली।
देखा .?., कहते हुये मैंने उनके ब्लाउज
के बटन भी खोल दिये।
मामी जी की गोरी चुचियाँ सिने किसी
बनपाव की तरह सजी हुयी थी।